आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी ग्रामीण अंधेरे में जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
यहां मशाल की रोशनी में होती है बेटियों की शादी, बेटों की शादी में नहीं लिए जाते ये उपहार |
ऐसा ही एक गांव है मध्यप्रदेश के सीधी जिले के आदिवासी बाहुल्य जनपद पंचायत कुसमी का ताल गांव। इस गांव में लोग अंधेरे को अपना भाग्य मान चुके हैं। हालात ये हैं कि यहां बेटियों की शादी मशाल की रोशनी में होती है। यह गांव प्रदेश सहित जिले का अंतिम छोर है। इस गांव को छूकर बहने वाली मबई नदी प्रदेश की सीमा तय करती है।
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मशाल जलाकर होती है शादियां
महिलाओं ने बताया कि गांव की लड़कियों की शादी अंधेरे में होती है। इस गांव में जनरेटर मंगाना महंगा पड़ता है क्योंकि जनरेटर के किराए से ज्यादा उसे लाने ले जाने में खर्चा होता है। ऐसे में लालटेन और चिमनी की रोशनी में शादी होती है। बेटों की शादी में उपहार के रूप में बिजली से चलने वाले उपकरण नहीं लिए जाते। बेटियों की शादी में मशाल जलाई जाती है जिससे रस्में पूरी की जा सकें।
एक सीजन की फसल
ताल और उसके सटे छड़ाहुला गांव के निवासी किसान साल भर में एक ही फसल लेते हैं। वह भी खरीफ सीजन की। बिजली नहीं होने से पानी की व्यवस्था करना मुश्किल है। ग्रामीण बेन बहादुर सिंह ने बताया कि गांव का किसान चाह कर भी रबी सीजन की फसल में सिंचाई नहीं कर पाते। यह स्थिति तब है जब गांव के पास से मवई नदी निकलती है। लेकिन यहां डीजल पंप मंगाना महंगा पड़ता है।
सोलर प्रोजेक्ट बेकार
ग्रामीणों के मुताबिक साल 2014 में ग्रामीणों के प्रदर्शन के बाद सोलर पैनल से गांवों को रोशन करने का काम शुरू हुआ। वर्ष 2015 में गांव में सौर ऊर्जा से बनी बिजली पहुंची लेकिन यह रोशनी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी। सोलर प्लांट में लगाई गई सोलर प्लेट चोरी हो गईं। इसकी सूचना ग्रामीणों ने पुलिस चौकी में दी, लेकिन दो ही प्लेट बरामद हो सकीं। जिसके बाद से सोलर प्लांट बेकार हो गया।